Thursday 1 March 2012

माता वैभव लक्ष्मी व्रत विधि - Vaibhav Lakshmi Fast Mrthod :

माता लक्ष्मी की कृ्पा पाने के लिये शुक्रवार के दिन माता वैभव लक्ष्मी का व्रत किया जाता है. शुक्रवार के दिन माता संतोषी का व्रत भी किया जाता है. दोनों व्रत एक ही दिनवार में किये जाते है. परन्तु दोनों व्रतों को करने का विधि-विधान अलग- अलग है. और दोनों के व्रत का उद्देश्य भी भिन्न है. आईये माता वैभव लक्ष्मी के व्रत को करने की विधि जानें.
माता वैभव लक्ष्मी के व्रत की यह खूबी है कि, इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों में से कोई भी कर सकता है. इस व्रत कि एक और विशेषता है कि इस व्रत को करने से उपवासक को धन और सुख-समृ्द्धि दोनों की प्राप्ति होती है. घर-परिवार में स्थिर लक्ष्मी का वास बनाये रखने में यह व्रत विशेष रुप से शुभ माना जाता है.
अगर कोई व्यक्ति माता वैभव लक्ष्मी का व्रत करने के साथ साथ लक्ष्मी श्री यंत्र को स्थापित कर उसकी भी नियमित रुप से पूजा-उपासना करता है, तो उसके व्यापार में वृ्द्धि ओर धन में बढोतरी होती है. व्यापारिक क्षेत्रों में दिन दुगुणी रात चौगुणी वृ्द्धि करने में माता वैभव लक्ष्मी व्रत और लक्ष्मी श्री यंत्र कि पूजा विश्लेष लाभकारी रहती है. इस व्रत को करने का उद्देश्य दौलतमंद होना है. श्री लक्ष्मी जी की पूजा में विशेष रुप से श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करना शुभ कहा गया है. पूजा में श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करने से माता शीघ्र प्रसन्न होती है.
इस व्रत को करते समय शास्त्रों में कहे गये व्रत के सभी नियमों का पालन करना चाहिए. और व्रत का पालन भी पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए. व्रत करते समय ध्यान देने योग्य कुछ सामान्य नियम निम्नलिखित है.
इस व्रत को यूं तो स्त्री और पुरुष दोनों ही कर सकते है. इसमें भी कन्याओं से अधिक सुहागिन स्त्रियों को इस व्रत के शुभ फल प्राप्त होने के विषय में कहा गया है. इस व्रत को प्रारम्भ करने के बाद नियमित रुप से 11 या 21 शुक्रवारों तक करना चाहिए.
व्रत का प्रारम्भ करते समय व्रतों की संख्या का संकल्प अवश्य लेना चाहिए. और संख्या पूरी होने पर व्रत का उद्धापन अवश्य करना चाहिए. उध्यापन न करने पर व्रत का फल समाप्त होता है.
व्रत के दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा उपासना करने के साथ साथ पूरे दिन माता का ध्यान और स्मरण करना चाहिए. व्रत के दिन की अवधि में दिन के समय में सोना नहीं चाहिए. और न ही अपने दैनिक कार्य छोडने चाहिए. आलसी भाव को स्वयं से दूर रखना चाहिए. आलसी व्यक्तियों के पास लक्ष्मी जी कभी नहीं आती है.
साथ ही प्रात: जल्दी उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए. जिस घर में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है, उस घर-स्थान में देवी लक्ष्मी निवास नहीं करती है.
लक्ष्मी पूजा में दक्षिणा और पूजा में रखने के लिये धन के रुप में सिक्कों का प्रयोग करना चाहिए. नोटों का प्रयोग करना शुभ नहीं माना जाता है.
माता वैभव लक्ष्मी व्रत विधि - Vaibhav Lakshmi Fast Mrthod :
व्रत को शुरु करने से पहले प्रात:काल में शीघ्र उठकर, नित्यक्रियाओं से निवृ्त होकर,. पूरे घर की सफाई कर, घर को गंगा जल से शुद्ध करना चाहिए. और उसके बाद ईशान कोण की दिशा में माता लक्ष्मी कि चांदी की प्रतिमा या तस्वीर लगानी चाहिए. साथ ही श्री यंत्र भी स्थापित करना चाहिए श्री यंत्र को सामने रख कर उसे प्रणाम करना चाहिए. और अष्टलक्ष्मियों का नाम लेते हुए, उन्हें प्रणाम करना चहिए. अष्टलक्ष्मी नाम इस प्रकार है. 1 श्री धनलक्ष्मी व वैभव लक्ष्मी, गजलक्ष्मी, अधिलक्ष्मी, विजयालक्ष्मी,ऎश्वर्यलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी आदि. इसके पश्चात मंत्र बोलना चाहिए.
मंत्र - Mantra :
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी ।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी ॥
या रत्‍नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी ।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्‍च पद्‌मावती ॥
जो उपवासक मंत्र बोलने में असमर्थ हों, वे इसका अर्थ बोल सकते है.
उपरोक्त मंत्र का अर्थ | Meaning of the Mantra :
जो लाल कमल में रहती है, जो अपूर्व कांतिवाली है, जो असह्य तेजवाली है, जो पूर्ण रूप से लाल है, जिसने रक्‍तरूप वस्त्र पहने है, जो भगवान विष्णु को अति प्रिय है, जो लक्ष्मी मन को आनंद देती है, जो समुद्रमंथन से प्रकत हुई है, जो विष्णु भगवान की पत्‍नी है, जो कमल से जन्मी है और जो अतिशय पूज्य है, वैसी हे लक्ष्मी देवी! आप मेरी रक्षा करें.
इसके बाद पूरे दिन व्रत कर दोपहर के समय चाहें, तो फलाहार करना चाहिए और रात्रि में एक बार भोजन करना चाहिए. सायं काल में सूर्यास्त होने के बाद प्रदोषकाल समय स्थिर लग्न समय में माता लक्ष्मी का व्रत समाप्त करना चाहिए.
पूजा करने के बाद मात वैभव लक्ष्मी जी कि व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए. व्रत के दिन खीर से माता को भोग लगाना चाहिए. और धूप, दीप, गंध
और श्वेत फूलों से माता की पूजा करनी चाहिए. सभी को खीर का प्रसाद बांटकर स्वयं खीर जरूर ग्रहण करनी चाहिए.
वैभव लक्ष्मी व्रतम | Vaibhava Lakshmi Vratam
भारत के दक्षिण भारतीय प्रदेशों में इस व्रत को वैभवा लक्ष्मी व्रतम के नाम से जाना जाता है. यह व्रत विशेष रुप से दक्षिण भारत में प्रचलित है. हिन्दू धर्म में महालक्ष्मी की पूजा विशेष रुप से की जाती है. महालक्ष्मी देवी अर्थ की देवि हे. बिना अर्थ के व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ रहता है. वैसे तो लक्ष्मी पूजा प्रतिदिन की जानी चाहिए. परन्तु जब वैभव लक्ष्मी व्रत को करने के साथ-साथ घर में देवी लक्ष्मी की पूजा -उपासना की जाती है, तो वह निसंदेह सफल होती है. आज के युग में जिनके पास धन है. वही सभी सुख-सुविधाओं से युक्त है.
कई बार तो धनी होने पर ही व्यक्ति को योग्य माना जाता है. धनी व्यक्तियों को समाज में जो मान -सम्मान प्राप्त है, वह आज किसी से छुपा नहीं है.

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